मंगलवार, 20 जनवरी 2015

गंगा की पवित्रता और राजनीतिक महत्वाकांक्षा

उत्तराखंड। करोड़ों श्रद्धालुओं की आस्था की केंद्र मां गंगा की पवित्रता, संरक्षण, इस पर प्रस्तावित जल विद्युत परियोजनाओं को लेकर राजनीति चरम पर है। इस बीच, खबर है कि गंगा को यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज घोषित करने के प्रस्ताव पर जांच का काम कठिन पैरामीटर्स को देखते हुए राज्य सरकार को हस्तांतरित कर दिया गया है। यह प्रस्ताव एएसआई (भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण) ने तैयार किया था। अब इस संबंध में केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय के साथ बैठक जल्द ही होगी। तकरीबन डेढ़ साल पहले पतित पावनी को यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज में शामिल हो सकने वाली धरोहरों की टेंटेटिव लिस्ट में शामिल किए जाने की तैयारी शुरू हुई थी।


गंगा को प्राकृतिक धरोहरों की श्रेणी में भेजा जा रहा था। गंगा के लैंडस्केप के साथ ही इस पवित्र नदी के किनारे स्थित मंदिरों के अभिलेखीकरण को भी इसमें शामिल किया गया था। यूनेस्को आईयूसीएन की टीम को आउटस्टैंडिंग यूनिवर्सल वैल्यू (ओएसवी), प्रामाणिकता, वैधानिक सुरक्षा, किसी तरह का सीमा अतिक्रमण न होना जैसे बिंदुओं पर प्रस्ताव की जांच कर रिपोर्ट तैयार करनी थी। लेकिन भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने कई पेंचों का हवाला देते हुए प्रदेश सरकार को इसके लिए उपयुक्त पाते हुए उनके पाले में यह कार्य सरका दिया है।

 प्राकृतिक खूबसूरती से लबालब उत्तराखंड में केवल दो ही विश्व धरोहर हैं। इनमें से एक चमोली जिले में स्थित नंदा देवी बायोस्फियर रिजर्व, जबकि दूसरा फूलों की घाटी है। यहां हर साल सैकड़ों पर्यटक आते हैं। गंगा के संबंध में इस प्रस्ताव पर कदम आगे बढ़ाने के लिए एक माह पहले जल मंत्रालय के साथ बैठक तय हुई थी, जो अपरिहार्य कारणों से स्थगित की गई है। यह प्रस्ताव नए सिरे से केंद्र को भेजा है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अधिकारी का कहना है कि गंगा के प्रति लोगों की आस्था, विश्वास, महत्ता और प्रामाणिकता को देखते हुए इसे विश्व धरोहर में शामिल होना ही चाहिए। इसमें अधिक भूमिका प्रदेश सरकार की है।

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