बुधवार, 18 फ़रवरी 2015

शिवरात्री पर्व 2015

उत्तराखंड के धामों में जागृत शिव लिंग पूजन,शिवरात्री पर्व पर शिवार्चन के लिए भक्तों की उमड़ी भीड़|

उत्तराखंड। उत्तराखंड को देवभूमि कहा जाता है। प्रदेश में कई स्थल ऐसे हैं जहां माना जाता है कि वहंा भगवान शिव ने स्वयं अवतरित होकर भक्तों का उद्दार किया था। राजधानी के टपकेश्वर, बागेश्वर के बागनाथ, गोपेश्वर के शिव और पौड़ी के किंकालेश्वर मंदिर में भक्तों का शिवार्चन के लिए तांता लगा रहा।

मंगलवार, 17 फ़रवरी 2015

कुछ महत्वपूर्ण समाचार

समाचार महत्वपूर्ण है। फोटो सहित अधिक से अधिक प्रसार आवश्यक है। हो सकता है यह समाचार प्रकाशन के बाद परिजन महिला को पहचान सकें...
कहीं केदारनाथ त्रासदी से भटककर तो नहीं आई ये महिला
उत्तराखंड। पिथौरागढ़ जिले के देवलथल पहुंची टूटी-फूटी मराठी बोल रही एक महिला को देखकर लोगों ने संभावना जताई है कि वह भी कहीं केदारनाथ से भटकी श्रद्धालु तो नहीं है। इस बात का इससे भी बल मिलता है क्योंकि देवलथल से सड़क थल, चैकोड़ी होते हुए बागेश्वर मिलती है और बागेश्वर से ग्वालदम। ग्वालदम चमोली जिले से सटा  है और चमोली जिले में ही केदारनाथ धाम है।

चूंकि ग्वालदम से पिथौरागढ़ के लिए नियमित केमू की बसें चलती हैं।

रविवार, 15 फ़रवरी 2015

बाघ बचाने को भारत-नेपाल आए साथ

उत्तराखंड। हल्द्वानी, बाघ को बचाने के लिए डब्ल्यूडब्ल्यूएफ के सहयोग से भारत-नेपाल के वनाधिकारियों की संयुक्त बैठक हल्द्वानी में हुई। इसमें बेहतर समन्वय के लिए निश्चित अंतराल पर दोनों तरफ के अफसरों की मीटिंग करने समेत कुछ बिंदुओं पर सहमति बनी है। मीटिंग में शामिल तराई पूर्वी वन प्रभाग के डीएफओ डा. पराग मधुकर धकाते ने बताया कि उत्तराखंड और नेपाल के जंगल आपस में जुड़े हैं, इसमें वन्यजीवों का मूवमेंट होता है। ऐसे में दोनों तरफ एक जैसी चुनौतियां और समस्याएं हैं। मीटिंग में मुख्य रूप से वन्यजीव और जैव विविधता संरक्षण पर बातचीत हुई है।

विदेशी बोर्ड के गुलाम हुए स्वदेशी स्कूल

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उत्तराखंड। केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) और काउंसिल फॉर द इंडियन स्कूल सर्टिफिकेट एग्जामिनेशन (सीआईएससीई) भले ही देशभर के हजारों स्कूलों में लाखों बच्चों का भविष्य गढ़ रहे हों। लेकिन उन स्कूलों को अब ये बोर्ड नहीं भा रहे हैं, जिन्हें शिक्षा के क्षेत्र में देश ही नहीं दुनिया में भी नजीर माना जाता है। द दून स्कूल हो या श्रीराम स्कूल या फिर वसंत वैली।